जज़्बात कुछ युँ थे, के ख़्वाब बहुत टूटे थे, जो जीने कि बात करते थे, वो भी तो चले गए थे, हसते थे हसाते थे, पर आगाज़ किया ग़मों ने यूँ, कि छोड़ा फिर तोडा, फिर टूट कर जुड़ते हुए यूँ सोचा कि शायद जीना इसी का नाम है, अब जीना है तो हसना भी है, ग़मो में यूँ पिसना भी है.. पर लेकर एक मुस्कान जो शायद वो छुपा सके.. जो हुआ वो भुला सके!